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छोटे छोटे दुःख

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2906
आईएसबीएन :81-8143-280-0

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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....

सेवक की अपूर्व सेवा


8 जुलाई के एक राष्ट्रीय दैनिक के पहले पन्ने पर पटुआखाली के एक लॉन्च-यात्री के बलात्कार की ख़बर छपी है! सबसे मजेदार बात यह है कि उस लॉन्च-यात्री का बलात्कार किसी चोर-डाक या लॉन्च के मस्तान लड़कों ने नहीं, दारूबाज बदमाशों ने नहीं, बल्कि उस लॉन्च की सुरक्षा के लिए तैनात 'अंसार' यानी पहरेदारों ने किया। वे लोग मुसम्मात बेगम नामक एक बीस-वर्षीया औरत को अपने केबिन में खींच ले गए और उन लोगों ने ज़ोर-जबर्दस्ती उसका बलात्कार कर डाला। वे कुल पाँच लोग थे। पाँच-पाँच अंसारों ने बारी-बारी से उस औरत का बलात्कार किया। पूरा लॉन्च लोगों से भरा हुआ, लेकिन वे लोग ज़रा भी परेशान नहीं हुए। इन सेवकों के पुरुषांग उस भीड़भरे लॉन्च में, एक महिला यात्री के लिए तन गए। खैर, पुरुषांग तनने में मुझे कोई एतराज नहीं है। वे लोग सेवक भले हों, आखिर हैं तो मर्द, पुरुषांग तो तनेगा ही! वह औरत अगर उनकी उत्तेजना में साथ देती, अगर ऐसा हुआ होता कि पाँच लोगों से संगम करने में, मुसम्मात बेगम को कोई एतराज नहीं होता, तब इस बात को लेकर, समूचे देश में, कोई भी बवाल नहीं उठाता? बवाल उठाने का सवाल ही नहीं उठता। पारस्परिक रिश्ते में अगर दोनों की रजामंदी हो, तो हर इंसान को यह आज़ादी है कि वह किसी भी रिश्ते की गहराई में उतर जाए। लेकिन ज़ोर जबर्दस्ती कोई भी रिश्ता स्थापित नहीं किया जा सकता। ज़ोर-जबर्दस्ती कोई भी रिश्ता नहीं बनाना चाहए। लोग-बाग समाज के सभ्य होने का दावा करते हैं। अगर यह सभ्य समाज है, तो जोर-ज़बर्दस्ती रिश्ता भला क्यों कर संभव है? अभी कल ही सरकार द्वारा नियुक्त किए गए ‘अंसार' जिसका मतलब ही है, 'स्वेच्छासेवी', वह भला किसी यात्री के बलात्कार के लिए कैसे आमादा हो सकता है? यात्रियों का सेवक ही, यात्रियों की सुरक्षा के विपरीत काम भला कैसे कर सकता है?

बलात्कार के बाद भी, हमारे सेवक बलात्कार के गुनाह के लिए सज़ा पाने के लिए राजी नहीं हैं, इसलिए जब यह ख़बर अंसार ऐडजुटेंट को दी गई, तो पाँचों सेवक-बलात्कारियों को 'सस्पेंड' तो कर दिया गया, लेकिन मुअत्तल करना तो आखिरी बात नहीं है, उन लोगों पर बलात्कार का मुकदमा भी तो चलाया जाना चाहिए।

सबसे बड़ी हैरत की बात तो यह है कि बलात्कार की शिकार औरत के संमेत अंसारों को जब ऐडजुटेंट कार्यालय में लाया गया, तब अंसारों ने जैसे जोर-जबर्दस्ती उस औरत का बलात्कार किया था, उसी तरह जोर-जबर्दस्ती ही बलात्कार की शिकार उस औरत को वहाँ से गायब भी कर दिया गया। चूंकि बलात्कार की शिकार वह औरत उपस्थित नहीं थी, इसलिए सूचना यह मिली कि पुलिस साहब लोग मुकदमा दर्ज नहीं कर पाए यानी बलात्कार का कोई मामला दर्ज नहीं हो सका। इस बलात्कार की ख़बर लॉन्च के तमाम यात्री जानते हैं; लॉन्च-मालिक भी जानता है; पुलिस जानती हैं, अंसार ऐडजुटेंट भी जानती है, जिस वजह से उन पाँचों को 'सस्पेंड' भी किया गया है, अब पुलिस के लिए उस बलात्कार की शिकार औरत की भला क्या ज़रूरत है? वह औरत तो खुद ही पुलिस स्टेशन जाने को तैयार थी, तब उसे हटा क्यों दिया गया? अब तो उनके खिलाफ दो-दो मुकदमे ठोंके जाने चाहिए। एक बलात्कार के खिलाफ, दूसरा लड़की गायब करने के खिलाफ! वे लोग बलात्कार भी करेंगे, बलात्कार की शिकार को चालाकी से गायब भी कर देंगे और उनके खिलाफ कोई मामला भी नहीं होगा। ऐसा इस सभ्य देश में, अगर वह देश सभ्य है, तो नहीं होना चाहिए। वैसे यह देश उचित-अनुचित की परवाह नहीं करता। सरकार अगर सबसे बड़ी सेवक है, उसने ही तो आम जनता का बलात्कार किया है, शायद इसीलिए अपने छोटे-मोटे सेवकों के बलात्कार को वह क्षमा-सुकर नजरिए से देखती है। इसके अलावा और क्या वजह हो सकती है? इसके अलावा अंसारों के गनाह के लिए, सजा देने के पक्ष में और कोई तर्क हो सकता है भला?

मुझे यह सोच-सोचकर हैरत होती है कि इस देश की प्रधानमंत्री, एक औरत हैं। हैरत है कि इस देश के विरोधी दल की नेता भी एक औरत है! उन लोगों को घर-बाहर के इन बलात्कारों की क्या कोई खबर नहीं मिलती? या मिलती भी है, तो उन लोगों के दिल में कोई आग नहीं लहकती? या उन लोगों को 'बलात्कार, कोई उपयोगी चीज़ लगती है? या इसमें नाराज होने लायक कोई बात नहीं लगती। देश की प्रधानमंत्री, एक अदद महिला होने के बावजूद, देश में अबाध रूप से वधू-हत्या, बलात्कार, अपहरण, एसिड फेंकने, दहेज के लिए अत्याचार, बाल-विवाह वगैरह का सिलसिला जारी है। अभी भी औरत के खिलाफ तरह-तरह के कानून तलवार ताने खड़े हैं। औरत होकर भी औरत का दर्द समझने की क्षमता जिसमें या जिन औरतों में नहीं है, वे लोग इंसान की और क्या सेवा कर सकती हैं! अगर वे ही लोग शोषित-अत्याचारित के पक्ष में खड़ी नहीं हो सकतीं। तब उन लोगों ने किसका पक्ष लेने के लिए महान सेवक की जिमेदारी उठाई है? क्या अमीर अत्याचारी, सुविधाभोगी और गुनहगारों का पक्ष लेने की जिम्मेदारी ली है?

पाँचों सेवकों द्वारा बलात्कार कोई खास घटना नहीं है। गाँव-गाँव, शहर-कस्बों में फुटपाथ, लॉन्च, ट्रेन, नौका, जहाजों में इस किस्म के बलात्कार होते ही रहते हैं।

इसके लिए किसी को सजा नहीं मिलेगी। इस देश में बलात्कार, कोई दंडनीय अपराध नहीं है। महान सेवकों के संगी-साथी, औरत के खिलाफ फतवा जारी करते रहेंगे। उस फतवे का धूमधाम के साथ पालन भी किया जाएगा। जिस देश में औरत के पक्ष में लिखने के जुर्म पर, लेखक-लेखिकाओं के पासपोर्ट छीन लिए जाते हों, उस देश में फतवे की राजनीति राज करेगी-इसमें हैरत की क्या बात है? अब तो किसी भी बात पर हमें ताज्जुब नहीं होता। हम अख़बारों में 'चौंकानेवाली' ये खबरें देखते हैं, पढ़ते हैं और भूल जाते हैं। अब कुछ भी हमें कातर नहीं करता। हमारी पीठ पर चेतना का कोई चाबुक नहीं पड़ता; क्योंकि अब हम बखूबी जान चुके हैं कि जनता के सेवक ही जब बलात्कारी की भूमिका में उतर पड़ते हैं, तो किसी इंसान की मजाल नहीं है कि उन्हें सज़ा दे सके। इस देश में सेवक तो बदलते रहते हैं, मगर सेवक का चरित्र कभी नहीं बदलता-चाहे वह औरत हो या मर्द!


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    अनुक्रम

  1. आपकी क्या माँ-बहन नहीं हैं?
  2. मर्द का लीला-खेल
  3. सेवक की अपूर्व सेवा
  4. मुनीर, खूकू और अन्यान्य
  5. केबिन क्रू के बारे में
  6. तीन तलाक की गुत्थी और मुसलमान की मुट्ठी
  7. उत्तराधिकार-1
  8. उत्तराधिकार-2
  9. अधिकार-अनधिकार
  10. औरत को लेकर, फिर एक नया मज़ाक़
  11. मुझे पासपोर्ट वापस कब मिलेगा, माननीय गृहमंत्री?
  12. कितनी बार घूघू, तुम खा जाओगे धान?
  13. इंतज़ार
  14. यह कैसा बंधन?
  15. औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?
  16. बलात्कार की सजा उम्र-कैद
  17. जुलजुल बूढ़े, मगर नीयत साफ़ नहीं
  18. औरत के भाग्य-नियंताओं की धूर्तता
  19. कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
  20. आलस्य त्यागो! कर्मठ बनो! लक्ष्मण-रेखा तोड़ दो
  21. फतवाबाज़ों का गिरोह
  22. विप्लवी अज़ीजुल का नया विप्लव
  23. इधर-उधर की बात
  24. यह देश गुलाम आयम का देश है
  25. धर्म रहा, तो कट्टरवाद भी रहेगा
  26. औरत का धंधा और सांप्रदायिकता
  27. सतीत्व पर पहरा
  28. मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
  29. अगर सीने में बारूद है, तो धधक उठो
  30. एक सेकुलर राष्ट्र के लिए...
  31. विषाद सिंध : इंसान की विजय की माँग
  32. इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह
  33. फतवाबाज़ प्रोफेसरों ने छात्रावास शाम को बंद कर दिया
  34. फतवाबाज़ों की खुराफ़ात
  35. कंजेनिटल एनोमॅली
  36. समालोचना के आमने-सामने
  37. लज्जा और अन्यान्य
  38. अवज्ञा
  39. थोड़ा-बहुत
  40. मेरी दुखियारी वर्णमाला
  41. मनी, मिसाइल, मीडिया
  42. मैं क्या स्वेच्छा से निर्वासन में हूँ?
  43. संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?
  44. कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?
  45. सिमी मर गई, तो क्या हुआ?
  46. 3812 खून, 559 बलात्कार, 227 एसिड अटैक
  47. मिचलाहट
  48. मैंने जान-बूझकर किया है विषपान
  49. यह मैं कौन-सी दुनिया में रहती हूँ?
  50. मानवता- जलकर खाक हो गई, उड़ते हैं धर्म के निशान
  51. पश्चिम का प्रेम
  52. पूर्व का प्रेम
  53. पहले जानना-सुनना होगा, तब विवाह !
  54. और कितने कालों तक चलेगी, यह नृशंसता?
  55. जिसका खो गया सारा घर-द्वार

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